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रायपुर। सुरेश (परिवर्तित नाम) के लिए यह अकल्पनीय था कि उसकी चुनमुन (परिवर्तित नाम) कभी खुलकर हंस सकेगी। 13 साल की चुनमुन चार कदम चलते ही हांफ जाती थी। कई बार उसे बैठे-बैठे चक्कर आ जाता था। इन 13 वर्षो में उसने बचपन को कभी नहीं जीया। न तो वो बच्चों के साथ खेली, न ही बच्चों के चिढ़ाने पर वो दूसरों से इतना अलग क्यों है, ये कभी समझ पाई। चुनमुन को सायकिल चलाना बड़ा अच्छा लगता था। पिता ने अपने खर्चो में कटौती कर सायकिल भी खरीदी पर वो सायकिल चुनमुन कभी नहीं चला सकी।

भविष्य को लेकर सपने बुनना असंभव सा था। सुरेश और उनकी पत्नी कभी सोच ही नहीं पाए कि उनकी पुत्री को कौन से कर्म का दंड मिल रहा है। पैसों की तंगी और पहुंच के अभाव ने उन्हें कभी किसी बड़े सरकारी अस्पताल की चौखट तक पहुंचने ही नहीं दिया।बस ईश्वर से आस थी कि कोई चमत्कार हो जाए। मां, रोज सुबह-शाम घंटों पूजा कर अपनी चुनमुन के स्वस्थ होने की कामना करती। फिर… फिर एक दिन ईश्वर ने उनकी सुन ली। गांव में कुछ स्वास्थ्य कार्यकर्ता पहुंचे। इन्होंने चुनमुन को देखा। उसकी स्क्रीनिंग की गई। जांच में पता चला कि चुनमुन के हृदय में छेद है। अब सुरेश के सामने एक नई समस्या थी।

उपचार के लिए पैसे कहां से आएंगे, इस विचार से सुरेश की नींद उड़ गई। किसी ने उसे बताया कि उपचार में तीन-चार लाख का खर्चा आएगा। उसकी इस नई समस्या में भी स्वास्थ्यकर्मी सामने आए। इन्होंने राज्य सरकार की चिरायु योजना से चुनमुन को जोड़ा। अंबेडकर अस्पताल ले जाकर उसकी जांच करवाई। इस आपरेशन में देश के इतिहास का एक रिकार्ड भी बन गया।चुनमुन का मंगलवार को आपरेशन हो गया। अब वो स्वस्थ है। गुरुवार को उसे अस्पताल से डिसचार्ज किया जा सकता है। चुनमुन का आपरेशन करने वाले अंबेडकर अस्पताल के कार्डियोलाजी विभागाध्यक्ष डाक्टर स्मित श्रीवास्तव ने सुरेश को आश्वसत् किया है कि अब उनकी चुनमुन खुलकर हंसेगी भी और दौड़ेगी भी। चुनमुन के आपरेशन में जीरो एक्सेंट्रिक बटन डिवाइस क्लोजर नामक तकनीक का उपयोग किया गया। इसके माध्यम से चुनमुन के दिल के छेद को बंद किया गया।

डा. स्मित ने बताया कि उनकी टीम ने चुनमुन के दिल के छेद वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट (वीएसडी) को एक विशेष प्रकार के जीरो एक्सेंट्रिक बटन डिवाइस का प्रयोग करते हुए बंद किया। मरीज के हृदय के वाल्व की निकटता के कारण छेद इस प्रकार था कि इसको सामान्य बटन डिवाइस से बंद करना जोखिम भरा था।सामान्य बटन डिवाइस से दिल के छेद को बंद करने से वाल्व से लीकेज होने की संभावना थी। ऐसे में एक नए ढंग से डिजाइन की गई वीएसडी बटन डिवाइस जीरो रिम एक्सेंट्रिक, जिसका किनारा शून्य साइज का होता है, का उपयोग करते हुए दिल के छेद को बंद किया गया।

यह है वीएसडी बीमारी

वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट (वीएसडी) दिल के निचले कक्षों (निलय) के बीच असामान्य संपर्क की वजह से होने वाला एक आम हृदय दोष है, जो जन्मजात होता है। इसमें दिल के निचले कक्षों बाएं व दाएं वेंट्रिकल के बीच दीवार में छेद होना शामिल है। ज्यादातर छेद अपने आप बंद हो जाते हैं, लेकिन कई बार छेद बंद करने के लिए आपरेशन या कैथेटर पर आधारित एक प्रक्रिया की जरूरत पड़ सकती है।

क्या है जीरो रिम डिवाइस

जीरो रिम एक्सेंट्रिक डिवाइस विशेष रूप से डिजाइन किया गया उपकरण है, जिसका उपयोग वीएसडी के इलाज के लिए किया जाता है। विशेष रूप से डिजाइन किया गया यह डिवाइस दिल के दोष एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट (दिल के छेद) को बंद कर सकता है। इसकी सफलता के परिणाम को देखने के लिए इस उपकरण पर विभिन्न अध्ययन किए गए हैं। इस उपकरण की उपलब्धि दर अब तक 98.91 फीसद है।

डा श्रीवास्तव ने रचा इतिहास

जीरो रिम पद्धति से दिल के छेद बंद करने वाले डा. स्मित श्रीवास्तव देश के चार विषय विशेषज्ञों में शामिल हो गए हैं। इस तरह से आपरेशन देश में केवल 10 बार हुए हैं।

देश के इन चार डाक्टरों ने किया जीरो रिम

  • -डा. स्मित श्रीवास्तव (एडवांस कार्डियक इंस्टिट्यूट, आंबेडकर अस्पताल, 7 फरवरी 2022)
  • -डा. विशाल चंगेला (कार्डियोलॉजिस्ट, एनएच अस्पताल, अहमदाबाद – 3 फरवरी – 2021)
  • -डा. शिव कुमार (कार्डियोलाजिस्ट – एमएमएम अस्पताल – चेन्नाई 21 नवंबर – 2021)
  • -डा. राजेश कुमार, (कार्डियोलाजिस्ट, एमजीएम अस्पताल – हैदराबाद 3 नवंबर- 2021) के नाम शामिल हैं।

20 किलो पहुंच गया था वजन

डा. श्रीवास्तव ने बताया कि आमतौर पर इस आयु के बच्चों का वजन 35 से 40 किलो तक होना चाहिए पर बीमारी के कारण चुनमुन का वजन 20-22 किलो तक हो गया था। यदि समय पर उसका उपचार नहीं कराया जाता तो आने वाले पांच-सात वर्षो के बाद ये समस्या जानलेवा बन जाती।

आंबेडकर अस्पताल में निश्शुल्क इलाज

जीरो रिम एक्सेंट्रिक डिवाइस उपकरण नई तकनीक है। विशेष परिस्थितियों में दिल के छेद को बंद करने के लिए इस उपकरण की मदद ली जाती है। जिस बालिका का इलाज हमने किया है, यह प्रक्रिया नहीं होती तो उसे ओपन हार्ट सर्जरी की आवश्यकता होती। वहीं एक लंबा प्रोसिजर लगता है। जीरो रिम डिवाइस से एक घंटे में आपरेशन को सफल किया है। प्राइवेट में लगभग चार लाख तक का खर्चा आता है। आंबेडकर अस्पताल में यह निश्शुल्क हुआ है। – डा. स्मित श्रीवास्तव, कार्डियोलाजिस्ट (विभागाध्यक्ष), एसीआइ

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