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जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने को चुनौती देने के मामले की सुनवाई करते हुए साफ किया कि इस बिंदु से जुडी कुछ याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने से पहले हाई कोर्ट कोई आदेश नहीं दे सकता। हालांकि प्रदेश में किसी भी भर्ती पर रोक नहीं लगाई गई है, इसलिए सरकार उसके लिए स्वतंत्र है। इसी तरह ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी पूर्व में पारित अंतरिम आदेश भी बरकरार है।

सोमवार को मामले की सुनवाई के बाद प्रशासनिक न्यायाधीश शील नागू व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की युगलपीठ उक्त व्यवस्था दी। इसी के साथ अगली सुनवाई 12 दिसंबर को निर्धारित कर दी। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी, अंशुमान सिंह, सुयश व अन्य ने पक्ष रखा। वहीं ओबीसी के विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक शाह ने कोर्ट को अवगत कराया कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित एक याचिका वापस लिए जाने का आवेदन 11 नवंबर, 2022 को दायर कर दिया गया है और शेष तीन याचिकाएं लंबित हैं। उन्होंने दलील दी कि सात नवंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण के मामले में कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक मान्य किया है। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में ओबीसी की 51 प्रतिशत जनसंख्या है। इसे दृष्टिगत रखते हुए 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया जाना संवैधानिक है। संविधान में आरक्षण की अधिकतम सीमा क्या होगी यह राज्य सरकार का क्षेत्राधिकार है। राज्य शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता हरप्रीत रूपराह व आशीष आनंद बर्नार्ड ने पक्ष रखा।

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