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फालना। मारवाड़ और विशेषकर गोडवाड़ में जल संरक्षण के क्षेत्र में हर स्तर विशेष प्रयास की जरूरत है। गोडवाड़ के सिमटते जल संसाधनों एवं पर्यावरण का अध्ययन कर रही सामाजिक कार्यकर्ता ज्योति श्रीपाल मुणोत ने कहा है कि पश्चिमी राजस्थान के इस इलाके में हमेशा न्यूनतम वर्षा होती है और भयंकर जल संकट की ओर जा रहा है। श्रीमती मुणोत दांतीवाड़ा बांध पर ठाकुर अभिमन्यु सिंह फालना के तत्वावधान में वृक्षारोपण करने के बाद वहां उपस्थित ग्रामीण लोगों से गोडवाड़ के सूखते जलस्रोतों व सिमटते जलसंधारण के बारे में चर्चा कर रही थी। इस अवसर पर ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान से जुड़े राजकमल पारीक, राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार, फालना नगरपालिका सदस्य दलपत गिरी गोस्वामी, प्रवासी युवा समाजसेवी ललित शक्ति विशेष रूप से उपस्थित थे। गोडवाड़ के कुछ गांवों का अध्ययन करने के बाद दांतीवाड़ा पहुंची श्रीमती मुणोत ने वहां उपस्थित आसपास के गांवों से आए लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि गोडवाड़ के जलस्रोतों की लगातार खराब होती हालत के कारण आने वाले कुछ सालों में इस इलाके की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है। जिसके लिए सरकार को समय रहते विशेष प्रयास करने ज़रूरी है।

गोडवाड़ में जल संरक्षण व पर्यावरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रही श्रीमती मुणोत के साथ ठाकुर अभिमन्यु सिंह फालना, निरंजन परिहार, गोस्वामी, ललित शक्ति सहित सभी लोगों ने दांतीवाड़ा बांध का जायजा लिया। गोडवाड़ इलाके के खाली तालाबों व बांधों की हालत को चिंताजनक बताते हुए ज्योति मुणोत ने कहा है कि इस इलाके में भू-जल की स्थिति अत्यन्त गंभीर है। उन्होंने कहा है कि इस क्षेत्र में भूजल स्तर की स्थिति पर पर्यावरण से जुड़े लोगों ने भी चिंता जताई है। मूल रूप से गोडवाड़ के दादाई की निवासी श्रीमती मुणोत ने जानकारी दी है कि भूजल की कमी के कारण गोडवाड़ को अतिदोहित इलाके की श्रेणी में ऱखा जा सकता है। अतिदोहित यानि ऐसा इलाका जहां रिचार्ज के उपाय नहीं किए जाने पर भूजल कभी भी समाप्त हो सकता है। उन्होंने कहा कि वृक्षारोपण के ज़रिए ही पर्यावरण को बचाने के साथ ही जलवायु की शुद्धता को बचाया जा सकता है। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार ने कहा कि राज्य सरकार खुद हालात से चिंतित है। ठाकुर अभिमन्यु सिंह ने गोडवाड़ के तालाबों व बांधों के संरक्षण करने व उनमें जल भराव की क्षमता के विकास को जरूरी बताया। ज्योति मुणोत ने कहा कि पश्चिमी राजस्थान के इस इलाके में हमेशा न्यूनतम वर्षा होती है और भयंकर जल संकट की ओर जा रहा है। आनेवाले कुछ सालों में इस इलाके की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को इसका भारी नुकसान हो सकता है।

प्रदेश भर में साल दर साल भूमिगत जलस्तर घट रहा है। लेकिन अच्छी बारिश होने के वक्त कभी कभार जल स्तर बढ़ जाता है। पिछले साल पाली जिले में पिछले साल सबसे जल स्तर कुछ जरूर बढ़ा था, लेकिन कुल मिलाकर यही स्थिति रही, तो संकट बड़ा हो सकता है। पिछले साल सोजत व रायपुर में 10 मीटर भूमिगत जलस्तर बढ़ा था। सबसे कम सुमेरपुर तहसील में 3 मीटर ही जलस्तर बढ़ा। जैतारण रानी, बाली व दूसरी में 7 से 8 मीटर तक जलस्तर बढ़ा था।

गोडवाड़ में अधिक सिंचाई वाली कृषि से करीब सभी गांवों में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है लेकिन कुछ गांव ऐसे भी हैं, जहां यह 2.8 मीटर प्रति वर्ष की दर से नीचे जा रहा है।

कृषि कार्यों में सिंचाई के दौरान 20 फीसद पानी बचाने की नीति को अगर गंभीरता से क्रियान्वित किया जाए तो 2028 तक भूजल स्तर गिरने की रफ्तार 30 से 60 फीसद तक घट जाएगी। परोक्ष रूप से इसे भूजल स्तर सुधार भी माना जा सकता है, जिससे पेयजल आपूर्ति आसान होगी।

एक अध्ययन के आधार पर शोधकर्ताओं ने तीन सुझाव दिए हैं।

  1. गोडवाड़ इलाके में अनाज सहित अधिक सिंचाई वाली फसलों की बुवाई कम करके वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा दिया जाए।
  2. फसलों की बुवाई एवं पिनाई में जल संरक्षण तकनीक का उपयोग किया जाए।
  3. खेतों में कुंड आदि बनाए जाएं, जहां जल संग्रहण किया जा सके।
    भूजल के गिरते स्तर को रोकने के दिशा में सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्तर पर हालांकि प्रयास जरूरी हैं और सरकार की नीति ठीक है, मगर उन पर ढंग से अमल किया जाए तो ही इसके फायदे होंगे। इसके अलावा वैकल्पिक कृषि उपाय भी अपनाए जाने की जरूरत है।
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