: उरई। राजनीतिक गलियारों में बसों-ट्रेनों के नाम पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, लेकिन सड़क पर चलते मजदूरों के हालात पर नजर डालें तो साफ हो जाता कि उन्हें मदद की दरकार है।
सैकड़ों मजदूर ऐसे हैं, जिनके लिए न तो ट्रेन है न बस, जिंदगी के सफर में उनके हमसफर ही मुसीबत की घड़ी में साथ निभा रहे हैं। अपनी हिम्मत और हौसले से कोई रिक्शा तो कोई साइकिल से घर जा रहा है। पैदल चलने वाले भी तमाम हैं और बाइक से परिवार को लेकर निकले भी कई लोग हैं।
, उरई-कानपुर हाईवे पर पैदल और बाइक सवार प्रवासी मजदूरों के निकलने का सिलसिला जारी है। पुणे से गोंडा जाने को निकले रामधीरज ने बताया कि लॉकडाउन के बाद से फैक्टरी में ताला पड़ा है। कुछ दिन बचत से काम चलाया तो कुछ दिन दोस्तों ने मदद की, लेकिन फिर हालात खराब हो गए।
बस फिर क्या था, जिस बाइक से कभी फैक्टरी में जाते थे, उसी पर उन्होंने और उनके साथी धर्मेंद्र ने गृहस्थी का जरूरी सामान बांधा और घरों के लिए निकल पड़े। करीब एक सप्ताह से परिवार को लेकर चल रहे हैं। रास्ते में कहीं बिस्कुट तो कहीं दालमोठ खाने को जरूर मिली, लेकिन किसी ने भी रोककर ट्रेन व बस में बैठाने की बात नहीं की।